Friday, February 26, 2010

गुरु स्मरण

गुरुदेव के चरणों में अर्पित पुष्पों की माला हैं
रामानंद सम्प्रदाय का जिन्होंने किया उजाला हैं
नये युग में जो देखों मानव सेवा हैं कर रहें
अमीर ग़रीब सब की खुशियों से झोली भर रहें
त्रिवेणी स्थल में जाकर हमै अपना जीवन धन्य बनाना हैं
गुरुदेव के वचनों को हमें अपने जीवन में अपनाना हैं
हिंदू धर्म प्रचलित करते और दिन दुखियों का उद्धार करें
राम नाम की बूटी देते और जग में सबका उपकार करें
निश दिन राम का नाम जपें और उन्हीं के शरण हों जाना हैं
गुरुदेव का स्मरण करके हम सब कों तर जाना हैं

Thursday, February 25, 2010

प्रार्थना

सारी विपदा टाल कर प्रभु हम पर करम करे
है प्रभु आप हमारे आप ही दुख़ का हरण करे
दुख़ जीतने भी आते उनको आप मिटाने वाले
बस प्रभु नाम आपका हर पल हम स्मरंण करे
है प्रभु ये जीवन आपका ,आप ही रक्षा करने वाले
आपके द्वारे आकर बस, हम आपके चरण पड़े
गुरु की वंदना जिसने की, उसकी नय्या पार हुई
प्रातः समय उठकर हम, बस उन्ही को नमन् करें
गुरू ब्रम्‍हा,गुरू विष्णु, रामायण वेद बताते हैं
गुरू के आगे हम अर्पण ये सारा जीवन करें

Tuesday, February 23, 2010

मोहब्बत

हमारी राहतों को जो थोड़ी सी राहत मिल जाए
और कुछ न सही, पर तुम्हारी मोहब्बत मिल जाए
बन्द आँखों से भी जिसे देखते हैं हम
उसे ही प्यार करने कि इजाज़त जो मिल जाए
छुपे हुये थे जो धड्कनो की आवाज़ मे
तुम वही तो थे, जिसे देखा था कभी ख्वाब मे
न तो कोइ और चाह है इस दिल में
कि हजार मिल जाए चाहे कोइ महफिल में
हमें तो सिर्फ बस आपकी इबादत जो मिल जाए
कि हम तो क्या, हमारी दुनिया ही बदल जाए

Monday, February 22, 2010

मंजिल

रोज सुबह यही सोचते हैं,
कि अब घर से निकले मंजिल को जायेंगे
फिर शाम हम वापस आ जायेंगे
इस जिन्दगी का हर पल ऐसे ही बिताना है
क्या है अभी पास, की अभी और भी तो पाना है
ये दिल अभी चाहता है और क्या
थोडी सी खुशी और तुम्हारा प्यार
है बहोत कुछ, मगर फिर भी
अपने अरमानो का कभी तो जस्न मनायेंगे
वक्त नही फिर भी कुछ पल तो निकाल ले जायेंगे

इन्तजार

हर पल जीने को मचलते है हम
पर हमारी खुशियों को छीन लेता है कोइ
इस पर यदि हम टूट जाते है
तो जीने का अधिकार भी छीन लेता है कोइ
कोइ गम न था ऐसा जो आन्शु मे न बहा
दुनिया तो कहती है किसिसे पर हमने न किसिसे कहा
तुमसे दूर रहने का बढता जाता है जो गम
आन्खे भी लाल सुर्ख हो गयी
ना तो जागी रही न ही मै सोयी
था तो बस तुम्हारा इन्तजार रहता था
पलक के सामने जो दरवाजा खुला रहता था
इस इन्तजार मे कि तुम आ कह सुनाओगे
कि अब रहा नहि जाता कब अपना बनाओगे