Monday, February 22, 2010

इन्तजार

हर पल जीने को मचलते है हम
पर हमारी खुशियों को छीन लेता है कोइ
इस पर यदि हम टूट जाते है
तो जीने का अधिकार भी छीन लेता है कोइ
कोइ गम न था ऐसा जो आन्शु मे न बहा
दुनिया तो कहती है किसिसे पर हमने न किसिसे कहा
तुमसे दूर रहने का बढता जाता है जो गम
आन्खे भी लाल सुर्ख हो गयी
ना तो जागी रही न ही मै सोयी
था तो बस तुम्हारा इन्तजार रहता था
पलक के सामने जो दरवाजा खुला रहता था
इस इन्तजार मे कि तुम आ कह सुनाओगे
कि अब रहा नहि जाता कब अपना बनाओगे

1 comment:

  1. Likhte rahiyega,
    hame aapki kavitaon ka intejar rahega..

    ReplyDelete