हर पल जीने को मचलते है हम
पर हमारी खुशियों को छीन लेता है कोइ
इस पर यदि हम टूट जाते है
तो जीने का अधिकार भी छीन लेता है कोइ
कोइ गम न था ऐसा जो आन्शु मे न बहा
दुनिया तो कहती है किसिसे पर हमने न किसिसे कहा
तुमसे दूर रहने का बढता जाता है जो गम
आन्खे भी लाल सुर्ख हो गयी
ना तो जागी रही न ही मै सोयी
था तो बस तुम्हारा इन्तजार रहता था
पलक के सामने जो दरवाजा खुला रहता था
इस इन्तजार मे कि तुम आ कह सुनाओगे
कि अब रहा नहि जाता कब अपना बनाओगे
Likhte rahiyega,
ReplyDeletehame aapki kavitaon ka intejar rahega..