Monday, July 30, 2012

सोच




कभी सोचकर बैठे रहो क्या करना क्या नहीं है करना
सोच सोच मैं वक्त निकलता जाता है
जीने की भी हो तमन्ना की
चोट खाकर कभी अपनों से लगता है फिर
की अब ज्यादा जी कर भी क्या है करना
ये तो दिल का पागलपन है जो यु ही सोचा करता है
सोचने के लिए और भी बहोत कुछ है
ये तो भावनाओ को कागज पर उकारता रहता है



जय सीताराम गुण

श्रद्धा से हम राम गुण गावें
मन कर्म और वचन से राम के हो जावें
वो है मर्यादा पुरुषोत्तम राम
पतितपावन सीताराम
है बड़े भाग्य हमारे की हमें राम कृपा है मिली
आओं चलें शरण राम की कृपा करेंगे भगवान
हैं सखा जिनके हनुमान
पतितपावन सीताराम
श्री राम के द्वारे हम जावें पुष्पों की माला बरशावे
झूठ कपट को त्याग कर, श्री राम मय हम हो जावें
जनक नंदिनी के श्री राम
पतितपावन सीताराम
हृदय बार बार ये गावे दरशन से ही प्रफुल्लित हो जावे
दिनन के हैं सहाइ जो पीड़ा सारी हरते हैं वो
दशरथ जी के दुलारे राम
पतितपावन सीताराम
भक्तन के दुख हरते राम
पतितपावन सीताराम

Wednesday, March 24, 2010

गम

न ही तुम्हे हम नज़र आतें हैं
न ही हमारे गम नज़र आतें है
दिल है हमारा नाज़ुक जो एक पल मै टूट जाता है
जब मिलता है साथ तुम्हारा
मिलके भी इस कदर छूट जाता है
कुछ तुम्हारी ख़ता कुछ हमारी ख़ता होती है
कभी तो होती थी आँखों से बात
अब तो सामने भी बात न होती है
क्या यूँ ही रूठ रूठ कर दिल जला करेंगे
दिल का दर्द भी हम फिर किसको बयान करेंगे
वक्त तुम्हारा तो गुजर जाएगा लोगों में
पर हम घर में यूँ ही घुट घुट कर मरा करेंगे

Friday, March 19, 2010

माता वैष्नव देवी

त्रिकूट पर्वत पर विराजमान मैया वैष्नव देवी है
के दिन देखो माता की ज्योति जागी है
मनोकामना पूरी करेहै माता वैष्नव देवी है
माता के द्वार पे देखो भक्तों की भीड़ बड़ी है
झोली हमरि खाली है माँ कब से मन ये तरस रहा
दुखड़ा हम का से कहें माँ अब तो आके कृपा बरसा
जीवन है अर्पण तुझपे की वो है पहाड़ा वाली माँ
देंगी खुशियाँ जीवन में मेरी ज्योता वाली माँ
अशांति और विपदा ने घेरा, पल पल मन ये डरता है
एक तू ही आश है माता मोको जग से तो डर लगता है
कृपा करेंगी वैष्नव देवी यही आश जगी है
त्रिकूट पर्वत पर देखो माता की ज्योति जगि है

Monday, March 15, 2010

भक्त तुलसीदास

तुलसीदास जी के बड़े भाग्य
जिनको राम कृपा है मिली
रचना की राम चरित मानस
जन जन फैलाई भक्तिमय धारा
गाये राम के गुण जिसने
पढ़ हुआ धन्य सारा जन मानस
तुलसी जी के बड़े भाग्य
दरशन हुए जिनको सियाराम के
हरपल गाते थे जो गुण
उन मर्यादा पुरुषोत्तम राम के
आज देखो पढ़ राम चारितमानस
सारा जग गुण गाता है
हर घर हर मंदिर में
आज भी यह मानस पढ़ा जाता है
जिसने भी यह मानस पढ़ कर जाना है प्रभु राम को
निरमल मनोहर मूरत वाले सुखधाम को
जीवन में आनंद भर जावे
तुलसी जी की तरह ही
तोहे राम कृपा मिल जावे

Sunday, March 14, 2010

दोस्ती

दोस्ती बनती है तो दोस्त अच्छे लगते हैं
बचपन के दोस्त भी कभी सच्चे लगते हैं
दोस्त बनते हैं जब तो उनकी जुदाई का गम होता है
सच्चे दोस्त मिल जाएँ जिसे वो बड़ा खुशनसीब होता है
दूर रहकर ही पता होता है की
क्या होते है फासले
दोस्त बनाने के भी चलते रहेंगे सिलसिले
भीड़ में कभी कोई दोस्त अच्छा मिल जाता है
कभी कोई झूठा तो कभी सच्चा मिल जाता है
दोस्तों की सही पहचान भी कैसे मिले
की दोस्त बनाने के भी चलते रहेंगे सिलसिले
की इस दिल के कोने में एक ऐसी आस है
हमें एक सच्चे दोस्त की तलाश है

Friday, March 12, 2010

तपता रेगिस्तान

तपती दोपहरी में पसीने से
भीगा हुवा ये तन
दूर एक रेगिस्तान में
पानी को तरस रहा है ये मन
है इसी आस में की बारिश तो होगी कभी
हमारे सुने से आँगन में
कोई फुलवारी तो खिलेगी कभी
तपती रेत पर कभी एक पानी की बूँद न गिरी
रेगिस्तान में एक घर में जला रही है दोपहरी
रेत के टिलों में पेड़ की छाव को
तरस रहा है ये मन
कभी तो बारिश होगी
कभी तो भिगेगा ये तन
तपता रेगिस्तान है फिर भी प्यारा यहाँ का घर
बारिश न आए तो भी
रहना है यहाँ सारी उमर