तपती दोपहरी में पसीने से
भीगा हुवा ये तन
दूर एक रेगिस्तान में
पानी को तरस रहा है ये मन
है इसी आस में की बारिश तो होगी कभी
हमारे सुने से आँगन में
कोई फुलवारी तो खिलेगी कभी
तपती रेत पर कभी एक पानी की बूँद न गिरी
रेगिस्तान में एक घर में जला रही है दोपहरी
रेत के टिलों में पेड़ की छाव को
तरस रहा है ये मन
कभी तो बारिश होगी
कभी तो भिगेगा ये तन
तपता रेगिस्तान है फिर भी प्यारा यहाँ का घर
बारिश न आए तो भी
रहना है यहाँ सारी उमर
No comments:
Post a Comment