Friday, March 12, 2010

तपता रेगिस्तान

तपती दोपहरी में पसीने से
भीगा हुवा ये तन
दूर एक रेगिस्तान में
पानी को तरस रहा है ये मन
है इसी आस में की बारिश तो होगी कभी
हमारे सुने से आँगन में
कोई फुलवारी तो खिलेगी कभी
तपती रेत पर कभी एक पानी की बूँद न गिरी
रेगिस्तान में एक घर में जला रही है दोपहरी
रेत के टिलों में पेड़ की छाव को
तरस रहा है ये मन
कभी तो बारिश होगी
कभी तो भिगेगा ये तन
तपता रेगिस्तान है फिर भी प्यारा यहाँ का घर
बारिश न आए तो भी
रहना है यहाँ सारी उमर

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