Sunday, March 7, 2010

यादें

जो है प्यारा हमें अपनी जाँ की तरह
वही पेश आता है अब तो ना मेहरबाँ की तरह
रोने की आदत न थी हमको
पर वो क्यों रुला रहे
ऐसे क्यों वो हो गये हैं
जो खुद बेवफा कहला रहे
ये दर्द छुपा हुवा था दिल में जिस तरह
इसे बताया भी तो कैसे जाए
जो था दिल के करीब इस तरह
उसे ही भुलाया भी तो कैसे जाए
अब तो तन्हा रहकर भी महफ़िल में भटकते हैं
की महफ़िल में रहकर भी तनहा से रहते हैं
रह रहकर ये दर्द आँखों में उभरता है जिस तरह
बस यादें लेकर जिसकी अब जी रहें हैं हर तरह

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